Sunday, July 17, 2011

'राजकवि' भास्कर रामचंद्र तांबे

घन तमी शुक्र बघ राज्य करी 
घन तमी शुक्र बघ राज्य करी |
रे खिन्न मना बघ जरा तरी ||
ये बाहेरी अंडे फोडोनी |
शुद्ध मोकळ्या वातावरणी |
का गुदामरशी आतच कुढूनी |
रे मार भरारी जरा वरी ||

घन तमी शुक्र बघ राज्य करी |
रे खिन्न मना बघ जरा तरी ||

फुल गळे फळ गोड जाहले |
बीज नुरे डौलात तरू डुले |
तेल जळे बघ ज्योत पाजळे |
का मरणी अमरता हि न खरी ||

घन तमी शुक्र बघ राज्य करी |
रे खिन्न मना बघ जरा तरी ||

मना वृद्धा का भिशी मरणा |
दार सुखाचे ते हरी करुणा |
आई पाही वाट रे मना |
पसरुनी बाहू कवळण्या उरी ||

घन तमी शुक्र बघ राज्य करी |
रे खिन्न मना बघ जरा तरी ||

~भा रा तांबे

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